क्यों कभी चुप रह जाया करता हूँ ...
क्यों कभी कुछ बातों को बस खुद को ही बताता हूँ ...
क्यों कभी चुप रह जाया करता हूँ क्यों कभी कुछ बातों को बस खुद को ही बताता हूँ जाने क्यों और कब से, बात करता हूँ बस खुद से दुनिया भर के लोगो से मिलकर भी जो ना कहता हूँ उनसे खैर दुनिया भर से कौन भला कुछ कह पाता है लेकिन दोस्त, हर किसी के सुख दुःख सांझे होते हैं जिनसे जाने क्यों उन दोस्तों से भी कुछ बात छुपा जाता हूँ जब लगता है कि कह ना दूँ उनसे, तभी खामोश हो जाता हूँ क्यों कभी चुप रह जाया करता हूँ क्यों कभी कुछ बातों को बस खुद को ही बताता हूँ कभी लगता है कि चिल्लाकर बता दूँ सबको कि हाल क्या है दिल के फिर लगता है कि जो हाल है उसको बताऊंगा कैसे कभी लगता है की मुश्किल हो रहा है जीना मेरा यूँ ही तन्हा चुप रहके फिर लगता है कि जो किसी को पता चल गया तो जीऊंगा कैसे जब देखता हूँ किसी अनजान को तो लगता है की इसको ही बोल देता हूँ फिर उस अनजान के जानकार निकलने के अंदेशे से ही रुक जाता हूँ क्यों कभी चुप रह जाया करता हूँ क्यों कभी कुछ बातों को बस खुद को ही बताता हूँ जाने कैसे कोई चुप रह सकता है इस कदर जाने कैसे बातों को छुपा जाती हैं मेरी नज़र जाने कैसे खामोश रह जाती ...